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नज़रों से ओझल / सुधा ओम ढींगरा

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मस्जिदों की अजाने
मंदिरों के घंटे
शून्य चीरते
हवाओं संग गूंजते
बुलाएँ ऐसे जैसे शाम को सहर.


सुखद क्षणों में भूलें
दुखद पलों में पुकारें
गम की लहरें
खोजें उसका ठौर
ढूंढें ऐसे जैसे रात को पहर.

हर गाँव
हर बस्ती में
है उसका बसर
फिर क्यूँ भटके इधर-उधर
खोजा ऐसे जैसे सागर को लहर.

झलक न पाई उसकी
पढ़ डाले वेद-पुराण
नज़रों से ओझल रहा
देखा हर द्वार
कम रही आराधना
पाया न ऐसे जैसे आंसू को नज़र.



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