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Kavita Kosh से
बड़े यत्न से जिन्हें छिपाया ये वे मुकुल हमारे, <br>
जो अब तक बच रहे किसी विध ध्वंसक इष्ट प्रलय से।<br>
ये अबोध कल्पक के शिशु क्या रीति जगत की जानें, <br>
कुछ फूटे रोमाञ्च-पुलक से, कुछ अस्फुट विस्मय से। <br>