भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधन गोधुन गैहै पै गैहै॥
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
Anonymous user