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अब लौं नसानी, अब न नसैहों / तुलसीदास
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स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी
रघुपतिपदकमल
रघुपति पदकमल
बसैहौं॥
डा० जगदीश व्योम
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