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बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।। <br><br>
कुछ रूखा, सूखा खाकर ही पीतें हों सरित सरिता का जल। <br>
पर न कुटिल आक्षेप जगत के करने आवें हमें विकल।। <br><br>
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