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Kavita Kosh से
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अपने साये से चौंक जाते हैं<br>
रात भर बोलते हैं सन्नाटे<br>
रात काटे कोई किधर िकधर तन्हा<br><br>
रात होती नहीं बसर तन्हा<br><br>
हमने दरवाज़े तक तो देखा था<br>
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