भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले श्वाँस श्वाँस में रमा वही सब हलन चलन तेरी मधुकर भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का निर्झर पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी वही प्रेरणा क्षमता ममता प्रीति पुलक उल्लास वहीटेर रहा सर्वस्वस्वीकृता है व्यक्ताव्यक्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।61।।मुरलीधर।।31।।
अगरु धूम से उड़े जा रहे अम्बर में जलधर कर्णफूल दृग द्युति वह तेरी सिंदूरी रेखा मधुकर सुर धनु की पहना देते उसको चपला वही हृदय माला प्राणों की वीणा की झंकृति निर्झरनीर बरस कर अर्घ्य आरती करती घन विद्युत माला वही सत्य का सत्य तुम्हारे जीवन का भी वह जीवन टेर रहा मधुरामनुहारा है परमानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर।।62।।मुरलीधर ।। 32।।
तुच्छ रह लटपट उसको पलकों की ओट कह ठुकराना वाला वह तेरा अर्पण होने दे मधुकर लघु पद सरिता को भी उर में भरता विशद सिंधु मिलन गीत गाता लहराता बहा जा रहा रस निर्झर लतिकाओं की वेदी में खेला करते लघु ललित सुमन तुम उसकी हो प्राणप्रिया परमातिपरम सौभाग्य यही टेर रहा प्रतिकणक्षणपर्वा है हृदयोल्लासिनि मुरली तेरा मुरलीधर।।63।।मुरलीधर।।33।।
जड़ पारसमणि मृदुल मृणाल भाव अंगुलि से छू लोहा भी कुंदन हो जाता मन प्राण बोध मधुकर प्राणनाथ सच्चा प्रियतम तो परम चेतना का रोम रोम में लहरा देता वह अचिंत्य लीला निर्झर स्नेहमयी ममता से तुमको सटा हृदय से हृदयेश्वर मधुराधर स्वर सुना विहॅंसता वह प्रसन्न मुख वनमालीटेर रहा परिवर्तनप्राणा है सर्वमंगला मुरली तेरा मुरलीधर।।64।।मुरलीधर।।34।।
भले चपल अलि कुटिल कलुषमय पर उसका ही तू नारकीय योनियाँ अनेकों रौरव नर्क पीर मधुकर सभी निर्धनों का धन वह उसके संग संग ले सह ले सब असहायों का बल निर्झर लांछित होकर भी न हिरण को कभीं त्याग देता हिमकर टेर रहा स्वजनाश्रयशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।65।। अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा टेर रहा करुणासाध्या मुरली तेरा मुरलीधर।।66।। क्या कण कण वासी अनन्त का अन्वेषण संभव मधुकर स्वयं भावना समझ करुण वह पास उतर आता लीला निर्झर चन्द्र दिवाकर स्वयं कृपाकर करते ज्योर्तिमय त्रिभुवन टेर रहा स्वजनांकमालिका मुरली तेरा मुरलीधर।।67।। तृषित चंचु चातक तुम सच्चा स्वाति मेघ माला मधुकर तुम पतझर पूरित कानन वह प्रियतम वासंती निर्झर तुम चकोर वह चंद्र मयूरी तुम वह श्रावण जलज सजल टेर रहा अंतराकर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।68।। रोता गगन बिलखती धरती दहक रहा पावक मधुकर उबल रहा पाथोधि प्रकम्पित मारुत रहना कहीं बनाये रखना उसको आँखों का अंतर निर्झर उद्वेलित वन खग पुकारते वह सच्चा प्राणेश कहाँ अंजनटेर रहा है पीरप्रणयिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।69।। प्रभु तुमको जानते अपर फिर जाने मत जाने मधुकर तेरा सच्चा से परिचय फिर मिले न मिले अपर निर्झर उस हृदयस्थ परम प्रियतम की चरण शरण ही कल्याणी टेर रहा करुणापयोधरा सर्वशिखरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।70।।मुरलीधर।।35।।
</poem>
916
edits