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{{KKBhaktiKavyaKKGlobal}}{{KKBhajan|रचनाकार=[[तुलसीदास]]
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ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ॥
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय ।धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां ॥<br><br>
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि ।<br>धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां ॥<br><br>
अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर ।<br>तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां ॥<br><br>
विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर ।<br>सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां ॥<br><br> तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद ।<br>
रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ॥
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