Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> हर...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
हर दिन बड़ा है आपका, अपना न एक दिन
सब छूरियाँ ठूँठी पड़ीं, कटता न केक दिन

सूरज बदन प’ झेलता, मौसम की लाठियाँ
बदले मिज़ाज अभ्र का, खोता विवेक दिन

कुछ गालियाँ देकर कभी, कुछ बाट गोलियाँ
तुम छल चुके हमको, सुनो, अब तक अनेक दिन

कुछ हाथ बढ़ रहे इधर, तुमको तराशने
आकाशबेल! खेल लो. जी लो कुछेक दिन

रोटी जहाँ गिरवी धरी, वह जेल तोड़ दें
अब मुक्त करना है हमें, बंदी हरेक दिन
</Poem>