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19:18, 1 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>पाँव का कालीन उनके हो गया मेरा शहर
कुर्सियों के म्यूज़ियम में खो गया मेरा शहर
हर गली-बाज़ार चोरों के हवाले छोड़कर
भोर से अण्टा चढ़ाकर सो गया मेरा शहर
पीठ पर नीले निशानों की उगी हैं बस्तियाँ
बोझ कितने ही गधों का ढो गया मेरा शहर
बाँसुरी की धुन बजाते घूमते नीरो कई
जनपथों पर भीड़ चीखी - लो गया मेरा शहर
चीड़ के ऊँचे वनों में फैलती यों सनसनी
जब जगा, कुछ आग के कण बो गया मेरा शहर </poem>