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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
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[[Category:ग़ज़ल]]
इस इश्क़ के हाथों से हर-गिज़ नामाफ़र देखा
उतनी ही बड़ी हसरत जितना हि ही उधर देखा
था बाइस-ए-रुसवाई हर चंद जुनूँ मेरा
कि उनको भी न चैन आया जब तक न इधर देखा
यूँ ही दिल के तड़पने का कुछ तो है सबब आ ख़िर आख़िर
याँ दर्द ने करवट ली है याँ तुमने इधर देखा
माथे पे पसीना क्यों आँखों में नमी सी क्यों
कुछ ख़ैर तो है तुमने क्या हाल-ए-जिगर देखा
</poem>
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