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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'"}}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 12|आगे=रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 1|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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'आह, बुद्धि कहती कि ठीक था, जो कुछ किया, परन्तु हृदय,
कि जैसे चाँद चलता हो गगन में।
 
 
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