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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 5|आगे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 7|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'भुज को छोड़ न मुझे सहारा किसी और सम्बल का,
घूम रही मन-ही-मन लेकिन, मिलता नहीं किनारा,
हुई परीक्षा पूर्ण, सत्य ही नर जीता सुर हारा.  [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 5|<< चतुर्थ सर्ग / भाग 5]] | [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 7| चतुर्थ सर्ग / भाग 7 >>]]