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|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
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[[category: ग़ज़ल]]

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'''लेखन वर्ष: 2005

मैंने दुआ की ख़ुदा ने क़ुबूल की तुम ज़िन्दगी बन गये
तुम धड़कनों को महकाकर मेरे ख़्वाब रंग गये

मैं तुम्हारे बारे में दिन-दिनभर बैठकर सोचता था
तुमने मुझसे बात की मेरे दर्द बर्फ़ बन गये

तेरी सूरत भी ख़ूब है और तेरी सीरत भी ख़ूब है
तुम अपनी प्यारी बातों से मेरे भी लफ़्ज़ रंग गये

तेरी हुस्ने-सादगी ने मुझे अपना दीवाना कर लिया
तुम बेक़रार दिल का राहतो-आराम बन गये

</poem>