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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}<poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
वो काफ़िर आशना ना आश्ना यूँ भी है और यूँ भी
हमारि हमारी इब्तदा ता इंतहा यूँ भी है और यूइँ यूँ भी
त'अज्जुब क्या अगर रस्म-ए-वफ़ा यूँ भी है और यूँ भी
कि हुस्न-ओ-इश्क़ का हर मसल'आ यूँ भी है और यूँ भी
न पा लेना तेरा आसाँ न खो देना तेरा मुमकिन
मुसीबत में ये जान-ए-मुब्तला यूँ भी है और यूँ भी
</poem>
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