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इच्छा / इब्बार रब्बी

48 bytes added, 18:53, 11 मई 2009
पायदान पर लटक कर नहीं
पहिये से कुचलकर नहीं
पीछे घसीटता घसिटता हुआ नहीं
दुर्घटना में नहीं
मैं मरूँ बस में खड़ा-खड़ा
दस हाथ नीचे
दिल्ली की चलती हुई बस में मरूँ मैं
 अगर कभी मारून मरूँ तोबस के योवन बहुवचन के बीचबस के यौवन और सोन्दर्य के बीच
कुचलकर मरूँ मैं
अगर मैं मरूँ कभी तो वहीं
जहाँ जिया गुमनाम लाश की तरह
गिरुं गिरूँ मैं भीड़ में
साधारण कर देना मुझे है जीवन!
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