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07:24, 19 मई 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’
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मन सागर पर मनमोहन की उतरे मधु राका मधुकर
प्राण अमा का सिहर उठे तम छू श्रीकृष्ण किरण निर्झर
प्रियतम छवि की अमल विभा से हो तेरा तन मन बेसुध
टेर रहा है भुवनसुन्दरी मुरली तेरा मुरलीधर।।156।।
प्राणेश्वर अभ्यंग सलिल की सुधा जाह्नवी में मधुकर,
मज्जन कर उनके पद पंकज रज का कर चंदन निर्झर
प्राण कलेवा के जूठन का कर ले महाप्रसाद ग्रहण
टेर रहा है प्रीतिमधुमती मुरली तेरा मुरलीधर।।157।।
चिदानन्दमय उस काया की छाया चूम चूम मधुकर
उसकी पद रज में बिछ जा उड़ उसके अम्बर में निर्झर
कर परिक्रमा उसकी उससे सीख सुहागिन प्रीति कथा
टेर रहा है प्रेमपर्वणी मुरली तेरा मुरलीधर।।158।।
सात्विक श्रद्धा दीवट पर विश्वास प्रदीप जला मधुकर
प्राण गुफा से बहने दे प्रिय मिलन राग सस्वर निर्झर
ललक उतरने दे पलकों पर कृष्ण प्रतीक्षा का पंछी
टेर रहा है प्रीतिचन्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।159।।
जन्म जन्म की कृपण भावना हरने को उत्सुक मधुकर
रोम रोम में पीर नयन में भर भर अश्रु सलिल निर्झर
निज मधुमय परिचय देने को आतुर प्रियतम उमग उमग
टेर रहा है प्राणसंगिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।160।।
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