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ताशक़न्द की शाम / अली सरदार जाफ़री
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15:47, 23 मई 2009
ख़ुदा करे कि यह शबनम यूँ ही बरसती रहे
ज़मीं हमेशा लहू के लिए तरसती रहे
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चंद्र मौलेश्वर
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