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Kavita Kosh से
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया<br><br>
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया <br><br>
अब आईने में देख़ता हूँ मैं कहाँ चला गया <br><br>
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया <br><br>
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई <br>
वो छोटी -छोटी रन्जिशों रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया <br><br>
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई <br>
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक <br>
उठो अमलकशों अमलकशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया <br><br>