भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मेरे लिये कोई शयान-ए-इल्तमास नहीं <br><br>
तेरे उजालों में भी दिल काँप -काँप उठता है <br>
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीँ <br><br>
कभी -कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़रे थे <br>
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं <br><br>