भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=केशव.
}}
[[Category:छंद]]
<poem>
मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के ,सूत कैसो सुर ध्वनि मननि हरति है ।है।दारयोँ कैसो बीज दाँत पाँत से अरुण ओँठ ,केशोदास देखि दृग आनँद भरति है ।है।येरी मेरी तेरी मोँहिँ भावत भलाई तातेँ ,बूझति हौँ तोहिँ और बूझति डरति है ।है।माखन सी जीभ मुख कँज सी कोमलता मे ,काठ सी कठेठी बात कैसे निकरति है ।है।
'''केशव. का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
</Poem>