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लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,<br>
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।<br><br>
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|आगे=मधुशाला / भाग २ / हरिवंशराय बच्चन
|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन
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