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09:47, 2 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शाद अज़ीमाबादी
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<poem>
मेरी तलाश में मिल जाए तू, तो तू ही नहीं।
इस अम्रेख़ास में कुछ जाए, गुफ़्तगू ही नहीं॥
नियाज़मंद को लाज़िम है चश्मतर रखना।
अदा नमाज़ न होगी अगर वज़ू ही नहीं॥
वोह दामन अपना उठाए हुए हैं क्यों दमे-क़त्ल?
खु़दा के फ़ज़्ल से याँ जिस्म में लहू ही नहीं॥
</पोएम>