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देख 'फ़ानी' वोह तेरी तदबीर की मैयत <ref>अर्थी</ref> न हो।इक जनाज़ा <ref>शव</ref> जा रहा है दोश पर <ref>कंधे पर</ref> तक़दीर के।।
या रब ! तेरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'।
लेकिन तेरी रहमत की ताख़ीर <ref>देरी, विलम्ब</ref> को क्या कहिए।।
हर मुज़दए-निगाहे-ग़लत जलवा ख़ुदफ़रेब।
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