भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
क़त्ले-आफ़ताब<ref> </ref>
=========
शफ़क़१ शफ़क़<ref>सवेरे या शाम के समय क्षितिज की लालिमा </ref>के रंग में है क़त्ले-आफ़ताब का रंगउफ़ुक२ उफ़ुक़<ref>क्षितिज </ref> के दिल में है ख़ंजर, लहूलुहान है शाम
सफ़ेद शीशा-ए-नूर और सिया बारिशे-संग
ज़मीं से ता-ब-फ़लक है बलन्द रात का नाम
यकीं का ज़िक्र ही क्या है कि अब गुमाँ भी नहीं
मका़मे-दर्द नहीं, मंज़िले-फ़ुगाँ भी नहीं
वो बेहिसी३ बेहिसी<ref> चेतना या एहसास का अभाव</ref> है कि जो क़ाबिले-बयाँ भी नहीं
कोई तरंग ही बाक़ी रही न कोई उमंग
जबीने-शौक़ नहीं संगे-आस्ताँ भी नहीं
इक इन्तिहा है फ़क़त हुस्ने-इब्तिदा के लिए
बिछे हैं खा़र कि गुज़रेंगे क़ाफ़िले गुल के
क़मोशी ख़मोशी मुह्र-ब-लब४ लब<ref> स्तब्ध,मौन</ref>है किसी सदा के लिएउदासियाँ हैं ये सब नग़मःओ-नवा५ नवा<ref>गीत और स्वर </ref> के लिए
वो पहना शम्‌अ़ ने फिर ख़ूने-आफ़ताव का ताज
सितारे ले के उठे नूरे-आफ़ताब के जाम
पलक-पलक पे फ़ुरोज़ाँ६ फ़िरोज़ाँ<ref>आलोकित </ref> हैं आँसुओं के चिराग़
लबें चमकती हैं या बिजलियाँ चमकती हैं
तमाम पैरहने-शब में भर गए हैं शरार
जवान ख़्वाबों के जंगल से आ रही है नसीम
नफ़स में नक्‌हतेनिक़हते-पैग़ामे-इन्क़िलाब७ इन्क़िलाब<ref>इन्क़िलाब के पैग़ाम की ख़ुशबू </ref> लिए
ख़बर है क़ाफ़िलः-ए-रंगो-नूर निकलेगा
सहर के दोश८ दोश<ref>काँधा </ref> पे इक ताज़ा आफ़ताब लिए-----------------------------------------------१.सवेरे या शाम के समय क्षितिज की लालिमा २.क्षितिज ३.चेतना या एहसास का अभाव ४.स्तब्ध,मौन ५.गीत और स्वर ६.आलोकित ७.इन्क़िलाब के पगा़म की ख़ुशबू ८.कन्धा
<poem>
{{KKMeaning}}