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क़त्ले-आफ़ताब<ref> सूर्य का वध </ref>=========
शफ़क़<ref>सवेरे या शाम के समय क्षितिज की लालिमा </ref>के रंग में है क़त्ले-आफ़ताब का रंग
उफ़ुक़<ref>क्षितिज </ref> के दिल में है ख़ंजर, लहूलुहान है शाम
सफ़ेद शीशा-ए-नूर और सिया बारिशे-संग
ज़मीं से ता-ब-फ़लक है बलन्द रात का नाम
इक इन्तिहा है फ़क़त हुस्ने-इब्तिदा के लिए
बिछे हैं खा़र कि गुज़रेंगे क़ाफ़िले गुल के
ख़मोशी ख़मोशी मुह्र-ब-लब<ref> स्तब्ध,मौन</ref>है किसी सदा के लिए
उदासियाँ हैं ये सब नग़मःओ-नवा<ref>गीत और स्वर </ref> के लिए
वो पहना शम्‌अ़ ने फिर ख़ूने-आफ़ताव का ताज
सितारे ले के उठे नूरे-आफ़ताब के जाम
पलक-पलक पे फ़िरोज़ाँफ़िरोज़ाँ<ref>आलोकित </ref> हैं आँसुओं के चिराग़
लबें चमकती हैं या बिजलियाँ चमकती हैं
तमाम पैरहने-शब में भर गए हैं शरार
जवान ख़्वाबों के जंगल से आ रही है नसीम
नफ़स में निक़हतेनिक़हते-पैग़ामे-इन्क़िलाब<ref>इन्क़िलाब के पैग़ाम की ख़ुशबू </ref> लिए
ख़बर है क़ाफ़िलः-ए-रंगो-नूर निकलेगा
सहर के दोश<ref>काँधा </ref> पे इक ताज़ा आफ़ताब लिए
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