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Kavita Kosh से
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पुकारने पर
तो बाहर नहीं भटकूंगी अब
बल्कि लौटूंगी
हृदयांधकार में बैठा
जल रह होगा तू
वहीं
तेरी मद्धिम आंच आँच में बैठ
गहूंगी
तेरे मौन का हाथ।
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