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{{KKRachna
|रचनाकार=रज़्म रदौलवी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>


रंग बदला किये ज़माने के।
चन्द जुमले मेरे फ़साने के॥
हो सके कब हरीफ़े-आज़ादी।
दरो-दीवार क़ैदखा़ने के॥


झलक यूँ यास में उम्मीद की मालूम होती है।
कि जैसे दूर से इक रोशनी मालूम होती है॥
मुबारक ज़िंदगी के वास्ते दुनिया को मर मिटना।
हमें तो मौत में भी ज़िंदगी मालूम होती है॥


</poem>