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Kavita Kosh से
ऐसे सूनेपन को
हो कितना ही गहरा नाता,
भरी-पूरी दुनिया में भी मन ख़ुद अपना बोझा ढ़ोता ढोता है।
ऐसा क्यों होता है?
ऐसा क्यों होता है?