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तालिबे-दीद पर आँच आये यह मंज़ूर नहीं / सफ़ी लखनवी
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16:49, 23 अगस्त 2009
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|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
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न ख़ामोश रहना मेरे हम-सफ़ीरो!
जब आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना॥
ग़ज़ल उसने छेडी़ मुझे साज़ देना।
ज़रा उम्रे-रफ़्ता की आवाज़ देना॥
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चंद्र मौलेश्वर
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