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[[Category:नज़्म]]
<poem>
क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हिं हैं पलकें
क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए
बरसात की इस रात में ए ऐ दोस्त तेरी याद इक तेज़ छुरी है जो उतरती ही चली जाए
कुछ एसी ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन
रक्खा है अजब नाम के , कि जो रास न आए हिज्र = जुदाई, नमनाक = नमी से भरी, बड़े पाए के = धुरंधर