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Kavita Kosh से
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं<BR>
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं<BR><BR>
मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं<BR><BR>
मुद्दतें गुजरी हैं , तेरी याद भी आई ना हमें<BR>
और हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं<BR><BR>
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर<BR>
दिल की गिनती ना यागानों में, ना बेगानों में<BR>
लेकिन इस ज़लवागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं<BR><BR>
ये झिझकते हुऐ मिलना कोई मिलना भी नहीं<BR><BR>
शिकवा-ए-शौक करे क्या कोई उस शोख शोख़ से जो<BR>साफ़ कायल भी नहीं और , साफ़ मुकरता भी नहीं<BR><BR>
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त<BR>
आह, मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजां भी नहीं<BR><BR>
बात ये है कि सूकून-ए-दिल-ए -वहशी का मकाम<BR>
कुंज़-ए-ज़िन्दान भी नहीं, वुसत-ए-सहरा भी नहीं<BR><BR>
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं<BR><BR>