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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्क़िल मुश्किल वरना साहिब
सम्भल कर तुम दोष इल्जाम लगाना
उसने खद्‍दर पहना साहिब
सब को दूर सुहाना लागे
क्यूँ ढोलों क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब
कितनी कयनातें कायनात सारी ठहरा देउस आँचल का ढलना ढ़लना साहिब</poem>  (द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009)
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