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लेखक: [[हरिवंशराय बच्चन]]
[[Category:किवताएँकविताएँ]][[Category:हिरवंशराय हरिवंशराय बच्चन]]
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टूट गई मरकत की प्याली,<br>
लुप्त हुई मिदरा मदिरा की लाली,<br>
मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं!<br>
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!<br><br>
जगती के नीरस मरुथल पर,<br>
हँसता था मैं जिनके बल पर,<br>
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!<br><br>
यौवन का उद्गार चढाऊँ?<br>
मेरी पूजा को सह लेने वाले वे पाषाण कहाँ है!<br>
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!<br><br>