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विसर्जन / महादेवी वर्मा
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18:40, 19 सितम्बर 2009
सिखाने जीवन का संगीत
तभी तुम आये थे इस पार।
बिछाती थी सपनों के जाल
तुम्हारी वह करुणा की कोर,
गई वह अधरों की मुस्कान
मुझे मधुमय पीडा़ में बोर;
भूलती थी मैं सीखे राग
बिछलते थे कर बारम्बार,
तुम्हें तब आता था करुणेश!
उन्हीं मेरी भूलों पर प्यार!
</poem>
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