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|संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशराय बच्चन
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अग्नि देश से आता हूँ मैं!
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हँहूँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
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