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01:37, 30 सितम्बर 2009 '''आस्था -५'''<br />
तुमनें<br />
बहते हुए पानी में<br />
मेरा ही तो नाम लिखा था<br />
और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं<br />
आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं<br />
मिट नहीं सकती लेकिन..<br />
'''आस्था -६'''<br />
मेरे कलेजे को कुचल कर<br />
तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?<br />
मेरे प्यार<br />
मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं<br />
इतना भी यकीं न था तुम्हें<br />
कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें<br />
कलेजा चीर कर<br />
तुम्हें फूलों पर रख आता..<br />