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देख रहें हैं
कैसे सिर के बल चलता आदमी
दरवाज़ों पर दीमक की फौज़
फहराती है आज़ादी का परचम
दाहिने-बांयें बाएँ थम...
मैडम का जनमदिन जन्मदिन है
जनपथों के ट्रैफिक जाम है
साहब का मरणदिन है
रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर
आदमी की खाल ख़ाल पहने सूअर
बढे आते हैं रैली को
थैली भर राशन उठायें
कि दिहाडी दिहाड़ी भी है, मुफ्त की गाडी गाड़ी भी हैदेसी और ताडी ताड़ी भी है..
और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश फ़रामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
तो कफन कफ़न खसोंट काबिज हो गये
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
फाँसी पर लटक कर जिस जड जड़ को उखाडने उखाड़ने का
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
वह अमरबेल हो गयी है