Changes

|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
 
आज अधर से अधर मिले हैं,
 
आज बाँह से बाँह मिली,
 
आज हृदय से हृदय मिले हैं,
 
मन से मन की चाह मिली;
 
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
 
चाँद-सितारों, मिलकर बोले,
 
कितनी बार गगन के नीचे
 
प्रणय-मिलना व्यापार हुआ है,
 
कितनी बार धरा पर प्रेयसि-
 
प्रियतम का अभिसार हुआ है!
 
चाँद-सितारों, मिलकर बोले।
 
चाँद-सितारों, मिलकर राओ!
 
आज अधर से अधर अलग है,
 
आज बाँह से बाँह अलग
 
आज हृदय से हृदय अलग है,
 
मन से मन की चाह अलग;
 
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
 
चाँद-सितारों, मिलकर बोले,
 
कितनी बार गगन के नीचे
 
अटल प्रणय का बंधन टूटे,
 
कितनी बार धरा के ऊपर
 
प्रेयसि-प्रियतम के प्राण टूटे?
 
चाँद-सितारों, मिलकर बोले।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits