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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज
साक़ी टुक एक मौसम -ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज
था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
पर कुछ कहा गया न ग़मे ग़म-ए-दिल हया से आज
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