552 bytes added,
16:38, 5 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम।
सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥
पाक निकले वहाँ से कौन जहाँ ।
उज़्रख़्वाही गुनाह हो जाये॥
इन्तहाये-करम वो है कि जहाँ।
बेगुनाही गुनाह हो जाये॥
</poem>