भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKPrasiddhRachna}}
{{KKCatKavita}}
{{KKVID|v=Ok5KMLElhhg}}
<poem>
दलित जन पर करो करुणा।
हरे तन मन प्रीति पावन,
मधुर हो मुख मनोभावनमनभावन,
सहज चितवन पर तरंगित
हो तुम्हारी किरण तरुणा
समुद्धत मन सदा हो स्थिर,
पार कर जीवन निरंतर
रहे बहती भक्ति वरूणा वरूणा।
</poem>