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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=ग्राम्या ग्राम्यान / सुमित्रानंदन पंत
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<poem>
यहाँ नहीं है चहल पहल वैभव विस्मित जीवन की,
यहाँ डोलती वायु म्लान सौरभ मर्मर ले वन की !
आता मौन प्रभात अकेला, संध्या भरी उदासी,
यहाँ घूमती दोपहरी में स्वप्नों की छाया सी !
यहाँ नहीं है चहल पहल वैभव विस्मित जीवन कीविद्युत दीपों का दिवस निशा में निर्मित, <br> यहाँ डोलती वायु म्लान सौरभ मर्मर ले वन की अँधियाली में रहती गहरी अँधियाली भय-कल्पित !<br>आता मौन प्रभात अकेलायहाँ खर्व नर (वानर ?) रहते युग युग से अभिशापित, संध्या भरी उदासी, <br> यहाँ घूमती दोपहरी अन्न वस्त्र पीड़ित असभ्य, निर्बुद्धि, पंक में स्वप्नों की छाया सी पालित !<br><br>
यहाँ अकेला मानव ही रे चिर विषण्ण जीवन-मृत !!
</poem>