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07:43, 19 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
डाली की तरह चाल लचक उठती है
ख़ुशबू से हर इक साँस छलक उठती है
जूड़े में जो वो फूल लगा देते हैं
अंदर से मेरी रूह महक उठती है
</poem>