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Kavita Kosh से
तुमने मुझे अहो मतिमान!
मैं अपने झीने अंचल आँचल में
इस अपार करुणा का भार
कैसे भला सँभाल सकूँगी
उनका वह सनेह आपार।स्नेह अपार।
लख महानता उनकी पल-पल