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कहावत ऐसे दानी दानि / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]राग नटनट<poem>
कहावत ऐसे दानी दानि।
 
चारि पदारथ दिये सुदामहिं, अरु गुरु को सुत आनि॥
 
रावन के दस मस्तक छेद, सर हति सारंगपानि।
 
लंका राज बिभीषन दीनों पूरबली पहिचानि।
 
मित्र सुदामा कियो अचानक प्रीति पुरातन जानि।
 
सूरदास सों कहा निठुरई, नैननि हूं की हानि॥
</poem>
भावार्थ :- `कहावत ...दानि' ऐसे दानी आज`दानी' के नाम से प्रसिद्ध हैं; राम और
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