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भोरहि सहचरि कातर दिठि/ सूरदास

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[[Category:पद]]
 
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भोरहि सहचरि कातर दिठि हेरि छल छल लोचन पानि ।
 
अनुखन राधा राधा रटइत आधा आधा बानि ।।
 
राधा सयँ जब पनितहि माधव, माधव सयँ जब राधा ।
 
दारुन प्रेम तबहि नहिं टूटत बाढ़त बिरह क बाधा ।।
 
दुहुँ दिसि दारु दहन जइसे दगधइ,आकुल कोट-परान ।
 
ऐसन बल्लभ हेरि सुधामुखि कबि विद्यापति भान ।।
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