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चाह / महादेवी वर्मा

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कलियों के उच्छवास शून्य में तानें एक वितान,
तुहिनकणों तुहिन-कणों पर मृदु कंपन से सेज बिछादें बिछा दें गान;
जहाँ सपने हों पहरेदार,
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