भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जहाँ बन्दी मुरझाया फूल
कली की हो ऐसी मुस्कान,
छिपा जो लेता है तूफान;
तुम्हारी यह निस्तब्ध तरंग।
तुम्हीं वह प्राणों का सन्यास,
लेखनी हो ऐसी विपरीत