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वह होटल के कमरे में दाख़िल हुई
अपने अकेलेपन से उसने
बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया।
कमरे में अंधेरा था
घुप्प अंधेरा था कुएँ का
उसके भीतर भी
वह होटल के कमरे सारी दीवारें टटोली अंधेरे में दाख़िल हुई<br>अपने अकेलेपन लेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं थापूरा खुला था दरवाज़ाबरामदे की रोशनी से उसने<br>ही काम चल रहा थाबड़ी गर्मजोशी सामने से हाथ मिलाया।<br><br>गुजरा जो ‘बेयरा’ तोआर्त्तभाव से उसे देखाउसने उलझन समझी औरबाहर खड़े-ही-खड़ेदरवाजा बंद कर दिया।
कमरे जैसे ही दरवाजा बंद हुआबल्बों में अंधेरा था<br>रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमलघुप्प अंधेरा था कुएँ “भला बंद होने से रोशनी का<br>उसके भीतर भी !<br>क्या है रिश्ता?” उसने सोचा।
सारी दीवारें टटोली अंधेरे में<br>डनलप पर लेटीलेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं था<br>पूरा खुला था दरवाज़ा<br>बरामदे चटाई चुभी घर की रोशनी से ही काम चल रहा था<br>, अंदर कहीं– रीढ़ के भीतरसामने से गुजरा जो ‘बेयरा’ तो<br>क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरतआर्त्तभाव से उसे देखा<br>सात गलीचों के भीतर भीउसने उलझन समझी और<br>बाहर खड़े-ही-खड़े<br>उसको चुभ जाता हैदरवाजा बंद कर दिया।<br><br>कोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का
जैसे ही दरवाजा बंद हुआ<br>पढ़ने को बहुत-कुछ धरा थाबल्बों में रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमल!<br>पर उसने बांची टेलीफोन तालिका“भला बंद होने से रोशनी और जानना चाहाअंतरराष्ट्रीय दूरभाष का क्या है रिश्ता?” उसने सोचा।<br><br>ठीक-ठीक ख़र्चा।
डनलप पर लेटी<br>चटाई चुभी घर कीफिर, अंदर कहीं– रीढ़ के भीतर!<br>तो क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरत?<br>सात गलीचों के भीतर भी<br>उसको चुभ जाता है<br>अपनी सब डॉलरें ख़र्च करकेकोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का?<br>उसने किए तीन अलग-अलग कॉल।
पढ़ने को बहुतसबसे पहले अपने बच्चे से कहा“हैलो-कुछ धरा था<br>हैलो, बेटेपर उसने बांची टेलीफोन तालिका<br>पैकिंग के वक्त... सूटकेस में ही तुम ऊंघ गए थे कैसे...और जानना चाहा<br>सबसे ज़्यादा याद आ रही है तुम्हारीअंतरराष्ट्रीय दूरभाष का ठीक-ठीक ख़र्चा।<br><br>तुम हो मेरे सबसे प्यारे!”
फिर, अपनी सब डॉलरें ख़र्च करके<br>उसने किए तीन अंतिम दो पंक्तियाँ अलग-अलग कॉल।<br><br>उसने कहींआफिस में खिन्न बैठे अंट-शंट सोचते अपने प्रिय सेफिर, चौके में चिंतित, बर्तन खटकती अपनी माँ से।
सबसे पहले अपने बच्चे ... अब उसकी हुई गिरफ़्तारीपेशी हुई ख़ुदा के सामनेकि इसी एक ज़ुबाँ से कहा–<br>उसने“हैलोतीन-हैलो, बेटे–<br>तीन लोगों से कैसे यह कहापैकिंग के वक्त... सूटकेस में ही “सबसे ज्यादा तुम ऊंघ गए थे कैसे...<br>हो प्यारे !”सबसे ज़्यादा याद आ रही यह तो सरासर है तुम्हारी<br>धोखातुम हो मेरे सबसे प्यारेज्यादा माने सबसे ज्यादा!”<br><br>
अंतिम दो पंक्तियाँ अलग-अलग उसने कहीं<br>आफिस में खिन्न बैठे अंट-शंट सोचते अपने प्रिय से<br>फिर, चौके में चिंतित, बर्तन खटकती अपनी माँ से।<br><br> ... अब उसकी हुई गिरफ़्तारी<br>पेशी हुई ख़ुदा के सामने<br>कि इसी एक ज़ुबाँ से उसने<br>तीन-तीन लोगों से कैसे यह कहा<br>–“सबसे ज्यादा तुम हो प्यारे !”<br>यह तो सरासर है धोखा<br>सबसे ज्यादा माने सबसे ज्यादा!<br><br> लेकिन, ख़ुदा ने कलम रख दी<br>और कहा–<br>“औरत है, उसने यह ग़लत नहीं कहा!”<br><br/poem>
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